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जिस किसी से मुहब्बत न कर / कैलाश झा 'किंकर'

जिस किसी से मुहब्बत न कर
पर किसी से अदावत न कर।

ज़िन्दगी खिल उठी प्रीत से
प्यार से अब बग़ावत न कर।

अनसुनी रह गयी प्रार्थना
पत्थरों की इबादत न कर।

बेवफाई की राहों पर जो
उसपे कोई इनायत न कर।

गलतियों से सभी सीखते
हर घड़ी अब शिकायत न कर।