जिस क्षण लेता जन्म सूक्ष्म मन,
दग्ध बीज-सा अग्निपूत बन।
अतिमानस का सत्य अकंुठित,
करता चक्षुशक्ति को दीपित।
मति, धृति, मेधा को अभिषेकित,
होता बोध गन्ध का नूतन।
ज्ञानभूमिका में परिनिष्ठित,
हो उठता चिन्मात्र विभासित।
अमृतज्योति से प्राण तरंगित,
कटते नामरूप के बन्धन।
जिस क्षण लेता जन्म दिव्य मन,
चिदानन्दमय ऋतप्रवीत बन।