भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जिस दिन से दबा सच कहने का बीड़ा उठाया है / सांवर दइया

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जिस दिन से दबा सच कहने का बीड़ा उठाया है।
हमारे ख़िलाफ़ हर रोज़ नया शगूफा आया है।

न सुन सके भूठ तो आप उठ खड़े हुए लोग वहां,
वे कहते- जलसे में पत्थर हमने फिंकवाया है!

पेट की फटकार सुन सब चल पड़े छीनने रोटी,
वे कहते- उन भूखों को हमने जा उकसाया है।

दाब बढ़ा तो यहां-वहां खुद ही फूट पड़े गुब्बारे,
वे कहते- इस घर में बारूद हमने बिछाया है!

सदियों से सोये समुद्र ने तोड़ डाले किनारे,
वे कहते- हमारी वजह से यह बवाल आया है।