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जिस मन्दिर में मैं गया नहीं / अज्ञेय

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जिस मन्दिर में मैं गया नहीं
उस की देहरी से
भीतर चिकनी गच पर
देख और पैरों की छाप
चला जाता है मन
उस ओर
जिधर जाना होता है।

ओ तुम सब! जिन की है पहुँच दूर तक
(जिस की जितनी)
मुझे किसी से हिर्स नहीं।
पैरों की छाप तुम्हारे
हर पग की मुझ पर पड़ती है :
मैं पहुँचूँ या नहीं, तुम्हारे पैरों से ही नपता-नपता
कभी जान लूँगा मैं अपनी नाप
और उस ओर नहीं, उस तक जा लूँगा :
जहाँ भी हूँ, उस का प्रसाद पा लूँगा।

नयी दिल्ली, 23 मई, 1968