भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जिस मोड़ पर किये थे / सुदर्शन फ़ाकिर
Kavita Kosh से
जिस मोड़ पर किये थे हम इंतज़ार बरसों
उससे लिपट के रोए दीवानावार बरसों
तुम गुलसिताँ से आये ज़िक्र-ए-ख़िज़ाँ ही लाये
हमने कफ़स में देखी फ़स्ल-ए-बहार बरसों
होती रही है यूँ तो बरसात आँसूओं की
उठते रहे हैं फिर भी दिल से ग़ुबार बरसों
वो संग-ए-दिल था कोई बेगाना-ए-वफ़ा था
करते रहें हैं जिसका हम इंतज़ार बरसों