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जीता हूँ मेरे दोस्त अब किस बेदिली से मैं / प्राण शर्मा

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जीता हूँ, मेरे दोस्त! अब किस बेदिली से मैं।
करता हूँ इसका ज़िक्र नहीं हर किसी से मैं।

ख़ामोशियाँ भी चाहिए कुछ तो कभी-कभी
सीखा हूँ एक बात ये भी ज़िंदगी से मैं।

अच्छी तरह पता है मुझे प्यार की गली
गुज़रा था एक बार कभी इस गली से मैं।

उपदेशकों की बात को मानूँ तो किस तरह
सम्बन्ध तोड़ सकता नहीं ज़िंदगी से मैं।

इतना भी प्यार मुझ पे न बरसा घड़ी-घड़ी
चुंधिया न जाऊँ इसकी कहीं रोशनी से मैं।