भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जीने का तेरे ग़म ने सलीक़ा सिखा दिया / 'उनवान' चिश्ती
Kavita Kosh से
जीने का तेरे ग़म ने सलीक़ा सिखा दिया
दिल पर लगी जो चोट तो मैं मुस्कुरा दिया
टकरा रहा हूँ सैल-ए-ग़म-ए-रोज़गार से
चश्म-ए-करम ने हौसला-ए-दिल बढ़ा दिया
अब मुझ से ज़ब्त-ए-शौक़ का दामन न छूट जाए
उन की नज़र ने आज तकल्लुफ़ उठा दिया
अपनी निगाह में भी सुबुक हो रहा था मैं
अच्छा हुआ के तुम ने नज़र से गिरा दिया
‘उनवाँ’ निगाह-ए-दोस्त का अंदाज देख कर
मैं अपने हाल-ए-ज़ार पे ख़ुद मुस्कुरा दिया