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जीने की चाह / राज हीरामन
Kavita Kosh से
चुपके अकेले अब नहीं रोना तुम
जानता हूँ तुम्हें आँसू बहाने का मन करता है,
अब मुझे भी रोने को मन करता है ।
रख लेने दो मेरा सर तुम्हारे कंधों पर,
थाम लो मेरा हाथ तुम्हारे हाथों में,
अब मुझे भी संग रहने को मन करता है ।
तलाशा दर्द आजीवन पर यातना मिली नहीं,
जान-बूझ कर ही सही, दे दो कुछ घाव,
अब मुझे भी दर्द सहने को मन करता है ।
तलाशी मौत घूम-घूम कर जीना मजबूरी था
पीठ पर ही सही, मार दो खंजर मुझे,
अब मुझे भी मरने को मन करता है ।
जो लिया बहुत, अब रास आई जिंदगी,
दे दो जीने का मंतर-जंतर,
अब मुझे भी जीने को मन करता है ।