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जीवण-रंग (3) / निशान्त
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समधी जी,
अेकर अठै आ’र
देखो तो सई
कितणा तेंदर करै
थारो दोहितो
दो-अेक बरियां खिलांवंतां -खिलांवतां
म्हैं बीं नै
गट्टारोळी खुआदी
अब तो बो रोज ई
आप री नान्ही सी नाड़ नै
हेटै कर’र सांमी मंड ज्यावै
कै गट्टारोळी खुआओ
नीं खुआवां तो चिंचावै
ऊंटियो तो थारै कनै गयो
जद भी गूंजे करतो
अब तो सूंडियै ई चढै
कदे-कदे घरां स्यूं भाज’र
गळी मांय जा लागै
कूरियां -बिल्लयां
अर आंवता-जांवता लोगां कानी
‘टाटा’ करै
चीड़ी -कागलां रो तो जाणै
बेली ई है
अबार चालण तो कोनी लाग्यो
पण थारलो दिरायेड़ो ‘बेबीवाकर’
गरणाट चढाद्यै
अेकर आ’र देखो तो सई ....।