तुम्हारी चाहना में था एवरेस्ट फ़तह
मैं खुश थी आज मैंने सारी रोटियाँ गोल बनाई 
तुम साध रहे थे तन और मन 
मैं नन्हों के लिए खेल का मैदान बन आई 
तुम जुटा रहे थे उपकरण , रुपये , साजो - सामान 
मैं पैदल राह पकड़ घरौंदे के लिए चार पैसे बचा आई 
शिखर पर पहुँच कर तुमने पुकारा मुझे 
मैं समग्र राष्ट्र बन आई 
तुमने कहा !
दम लगने पर मिला फूली रोटी का सहारा मुझे 
जब कमज़ोर पड़ रहे थे मेरे क़दम , तब बच्चों के 
गिरकर उठकर हँसने का दृश्य याद आया मुझे 
जब कम पड़ रही थी प्राणवायु 
तब बचत कर खर्च करने की तुम्हारी बात 
याद आई मुझे 
संगिनी !
मेरी हर फ़तेह का राज़ तुम हो 
मेरे हर शिखर पर गूंजती आवाज़ तुम हो !