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जीवन-पथ के राही से / महेन्द्र भटनागर
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बंधनों में, हार में रोना नहीं, रोना नहीं !
राह है यह ज़िन्दगी की एक पल रुकना न होगा,
देख सीमाहीन पथ को बीच में थकना न होगा,
ज्वार उठता हो उदधि में, मृत्यु-मुख में प्राण जाएँ,
गाज गिरती हो अवनि पर या दहलती हों दिशाएँ,
पर, हृदय-साहस कभी खोना नहीं, खोना नहीं !
हो अँधेरी रात चाहे, घोर गर्जन हो प्रलय का,
घेर ले झंझा भयानक, नृत्य हो चाहे अनय का,
मानकर चलना कि साथी हैं सभी झोंके भयंकर
ले चलेंगे पार फर-फर व्योम-पथ से जो उड़ा कर,
एक पल भी भय-ग्रसित होना नहीं, होना नहीं !
1949