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जीवन का सुख / अंकिता जैन
Kavita Kosh से
जीवन का सुख
जो चाहा था यथार्थ में
भटक रहा है कल्पनाओं के बीच कहीं,
मन की चाह
जिसमें भरी थी सपनों की हवा
गुब्बारे सी फूट, लावारिश पड़ी है कहीं
दिल के अरमान
जो डोलते थे बॉल से
इस पाले से उस पाले में,
अटक गए हैं किसी नोंक पर कहीं,
और दिमागी सुकून
जिसका वास है शांति में
विचर रहा है, कोलाहल के बीच कहीं।