जीवन के पथ में आते हैं कुछ मोड़ कभी / द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी
जीवन के पथ में आते हैं कुछ मोड़ कभी
जो राह पथिक की मोड़ दिया करते हैं।
माना कि मनस्वी होते हैं जो राही
वे अपनी राह बना लेते मनचाही।
फिर भी कुछ मजबूरी से, कुछ अनजाने
आ जाते हैं ऐसे क्षण अनपहिचाने!
जिन पर चलना पड़ता है रे, हँस-हँस कर
मन की मन में ही व्यथा छिपाकर अन्दर।
इसलिये कि सुनने वाला कौन कहाँ है
सुन कर सँग देने वाला कौन यहाँ है?
जो निकले अपने अन्तर से वे आँसू भी
आँखों को रोती छोड़ दिया करते हैं॥1॥
पथ मुड़ने की मुझको परवाह नहीं है
जीवन की यों भी सीधी राह नहीं है।
मैं ही अब तक जिस पथ पर चलता आया
औ’ स्नेह-भरा दीपक-सा जलता आया
उस पथ की भी थीं टेढ़ी-मेढ़ी राहें
पर पा दीपक की सीधी सरल निगाहें
ज्योतित होकर मंजिल को दिखा रही थीं
मंजिल की चाटी पर यह लिखा रही थीं-
‘मंजिल उनके नजदीक पहुँचती स्वयं जो कि
मंजिल से नाता जोड़ लिया करते हैं॥2॥