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जीवन के सफ़र पे, हम अकेले थे / तारा सिंह

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जीवन के सफ़र पे, हम अकेले थे चले
तुम मुसाफ़िर कहाँ से आ मिले

अब मत पूछ, वजहे मलाल क्या है,क्यों
ता उम्र हम भाग्य की बेरूखी पर तुले

वीरां दिल में हर तरफ़,शोले थे लहरा रहे
तुम्हारे दयार में हम खिरमने- उम्र जले

फ़िर भी न जल्लाद तक पहुँच पाये हम
हम तो वहीं रहे, हमारे पाँव बहुत चले

आज दामने प्राण गुले नरगिस से भर गया
हमारा, हम भूल गये सारे शिकवे- गिले

कहते हैं इश्क में, इज्जत और ज़िल्लत
दोनों हैं खुदा के हाथ,चलन चाहे जो चले