भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जीवन को गहराई तक है / चन्द्रनाथ मिश्र ‘अमर’
Kavita Kosh से
जीवन को गहराई तक है
पहुँच सका संसार न अबतक
मानव को मिल सका प्रभो!
जीवन का पारावार न अबतक
तुमसे लेकर एक मधुरता
जगसे केवल कटुता पाकर
क्या कर सकता है यह दुर्बल
रह जाता है हृदय दबाकर
शुष्क, अधर मिल सकी प्राण को
करूणा की रसधार न अबतक
जीवन को गहराई तक है
पहुँच सका संसार न अबतक
कर्म कठिन अति तीव्र मनोगति
ज्ञान कठिन, दुर्बल मानव गति
क्षण क्षण में नूतन कोलाहल
होता ही रहता है नितप्रति
उस पर भी मिट सका प्रभो!
जग पर से अत्याचार न अबतक
मानव को मिल सका प्रभो!
जीवन का पारावार न अबतक
मंजिल दूर चरण केवल दो
अपने चरण-कमल का बल दो
चंचल मन, न मनन करने की
क्षमता, इसको निश्चल कर दो
चंचलतावश दूर हुआ है
मन से नयन-विकार न अबतक
जीवन की गहराई तक है
पहुँच सका न संसार न अबतक