भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जीवन क्या है! / सुरंगमा यादव
Kavita Kosh से
23
तुम्हारे बिन
पतझड़ का वृक्ष
मेरा जीवन।
24
आपका आना
हिलोरें-सी उठना
शांत नदी में ।
25
चाँद लेखनी
लहरों पर लिखूँ
प्रेम रागिनी।
26
ओ मनमीत !
बिन कहे कहानी
तुमने जानी।
27
मुकुलित थीं
तुम्हें देख मन की
आशाएँ खिलीं।
28
खिली पूर्णिमा
प्रेम दीप के बिना
उजाला कहाँ?
29
रात प्रहरी
कैसे आऊँ मैं प्रिय ?
लाँघ देहरी।
30
प्रेम आँकना
शब्दों की तुला पर
है सहज न !
31
तुम्हारा स्पर्श
सूर्यकांत मणि-सी
पिघलती मैं ।
32
प्रेम तुम्हारा
लिखता मन पर
प्रणय ग्रन्थ ।
33
जीवन क्या है!
उड़ी, चढ़ी लो कटी
गिरी पतंग