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जीवन चाल चलन नईं दै रये / महेश कटारे सुगम
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जीवन चाल चलन नईं दै रये ।
मूतन और हगन नईं दै रये ।
सत्यानाश करौ बगिया कौ,
फूलन और फलन नईं दै रये ।
ठाण्ढौ कर दऔ डर कौ पैरौ,
कोउ खौं कितऊँ हलन नईं दै रये ।
भूखौ प्यासौ बैठारें हैं,
घर सें मनौ भगन नईं दै रये ।
उनकौ तौ मुर्गा रंध रऔ है,
कोउ की दार गलन नईं दै रये ।
एक जात तौ आत दूसरी,
आफत सुगम टरन नईं दै रये ।