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जीवन जब सूख जाए / रवीन्द्रनाथ ठाकुर / सुलोचना वर्मा

जीवन जब सूख जाए
करुणाधारा में आना
समस्त माधुरी छुप जाए
गीतसुधारस में आना

कर्म ले जब प्रबल-आकार
गरज उठे ढाक से दिशा चार
हृदयप्रान्त में हे नीरवनाथ ,
शान्तचरण से आना

स्वयं को जब बना कृपण
कोने में रहे पड़ा दीनहीन मन
द्वार खोल, हे उदार नाथ !
राज समारोह में आना

इच्छा मिले जब विपुल धूल में
कर अन्धा अबोध भूल में
हे पवित्र, हे अनिद्र
रूद्र आलोक में आना ।

मूल बांगला से अनुवाद : सुलोचना वर्मा