भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जीवन बचाता हूँ / प्रयाग शुक्ल
Kavita Kosh से
जल को बचाता
तो जीवन बचाता हूँ ।
हवा को सँवारता
निर्मल मैं रखता
तो जीवन बचाता हूँ ।
पेड़ फूल पत्ते उगाता मैं
रखता हूँ धरती को
हरे-भरे सपने मे,
जीवन बचाता हूँ ।
नभ को भी नील
तो जीवन बचाता हूँ ।
कम्पित लौ अग्नि की
रखता सम्भालकर
जीवन बचाता हूँ ।
इन सबसे घिरा
और इन्हीं में समाहित मैं
इनके सम्मोहन में
इन्हीं पर सवार मैं
जीवन बचाता हूँ ।