जीवन मृत्यु / मनीष मूंदड़ा
आज रात फिर
यह हवाई जहाज जोरों से हिल रहा हैं
आज फिर कहीं हवा का दवाब कम ज़्यादा हैं
ऊपर आसमान में जहाँ मैं हूँ
या नीचे जमीन की सतह के करीब, जो मेरी मंजि़ल हैं
अक्सर मेरे इन हवाई सफरों में, जब मैं ऐसे दवाबों के घेरे में होता हूँ
तो अपनी मृत्यु की तैयारी करता हूँ
पहले-पहल डर में गुजर जाते थे ये पल
मगर अब
मेरी आदत-सी बन गयी हैं
अब इन क्षणो में
मैं जो मेरे अपने हैं
कुछ मुझसे दूर और कुछ जो मेरे करीब हैं
उनको याद कर नमन कर लेता हूँ
ईश्वर को वंदन कर, संस्मरण कर लेता हूँ
कुछ माफियाँ माँगता हूँ
तो कुछ को वापस मिलने का
दूसरे जीवन में फिर साथ चलने का वादा कर देता हूँ
कुछ हँसी याद आती है, तो वहीं कुछ आँसू दोबारा जी लेता हूँ
कुछ को अपने मन में गले लगा लेता हूँ
कुछ को दूर से ही अलविदा कह लेता हूँ
अब मुझे मृत्यु से डर नहीं लगता
कई बार जिया है उसे करीब से