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जीवन में जे पूजा / रवीन्द्रनाथ ठाकुर / सिपाही सिंह ‘श्रीमंत’

जीवन में जे पूजा पूरा भइल ना कबहूँ
जानत बानीं, सेहू पूजा व्यर्थ ना होई।
बिन खिलल जे फूल झड़ गइल,
नदी धार जे मरुभूमि में गुम हो गइल,
जानत बानीं, ई सब कबहूँ व्यर्थ ना होई।
आज तलक जे जीवन में बाटे पिछुआइल
जानत बानीं, रही सदा ना ऊ पिछुआइल।
हमर अनागत (जे भविष्य क गोदी मेभें ब),
हमर अनाहत (जे अबतक आघत बिन ब),
सब तहरा वीणा के तारन पर बाजत बा।
जानत बानीं ई सब कबहूँ व्यर्थ ना होई।