भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जीवन यों ही बीत गया / गुलाब खंडेलवाल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


जीवन यों ही बीत गया
पिया न आप, न दिया किसीको, प्याला रीत गया
 
बूँद-बूँद कर जोड़ा जो मधु सारी आयु सँजोया
एक तनिक-सी ठोकर से ही उसे निमिष में खोया
देख रहा हूँ मैं विस्मित-सा, कहाँ अतीत गया
 
कभी एक पल को माना, प्रिय सपना सत्य हुआ था
जब तेरे अधरों से लगकर मन कृतकृत्य हुआ था
किन्तु दूसरे ही क्षण कोई बाजी जीत गया
 
अब न कभी लौटेंगे वे दिन, वे पहले-सी रातें
मेघ घिरेंगे पर न फिरेंगी वे रसमय बरसातें
जाने कहाँ भुलावा देकर मन का मीत गया!

जीवन यों ही बीत गया
पिया न आप, न दिया किसी को, प्याला रीत गया