सदियाँ बीत गयी
इक उलझन सुलझाने में
अनगिनत हस्तियाँ
आई
और
चली गयी होंगी
असंख्य किरदार
फ़ना हो गए होंगे
सुल्तान फ़क़ीर हो गए होंगे
अश्क बह कर
समंदर बन गए होंगे
मुस्कान आहें बनी होंगी
आह पुनः स्मित बनी होगी
अभिमन्यु
हाँ! अभिमन्यु-सा मन
चक्रव्यूह में विचरण कर
योगी बन
इकतारा लिए हाथ
घुम्मकड़-सा
फिर होगा
यत्र-तत्र
हिमालयी गुफाओं में
एकाग्रचित्त हो
मनन चिन्तन किया होगा
बारम्बार
किन्तु फिर भी वह
एक अंश भी
सार न पा सका होगा
थाह न पा सका होगा
जीवन के इन
गूढ़ रहस्यों का