भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जीवन है जग का आधार / बी. एल. माली ’अशांत’

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हेली मेरी !
जीवन है जग का आधार
मनुष्य को भूले नहीं बनेगा ।

भीतर उग आया है विध्वंश
मंडरा रहा है खतरा जीवन पर
मनुष्य सुन रहा है पूर्वी आवाजें
विध्वंध-राग बज रही है ।

हेली मेरी !
मनुष्य से दूर मत जाना
जीवन दे मनुष्य-योनी को
माया देख कर कंपित है जग सार
दूर है मनुष्य से सुख-स्वप्न
सांसों में खुशबू दे हे प्रगाढ़ सहेली ।

हेली मेरी !
सुख गठरी
ऊंचवा दे जग को
मनुष्य को दे दे
सपने सुहावने ।
कोयल गा रही है मृत्यु-राग
मोर कुरलाता है दिन-रात
विनाश हंस रहा है हड़-हड़ ।

हेली मेरी !
मनुष्य की बुद्धि की डोर पकड़
सच के रास्ते ले आ उसे
साथ की सहेली !
विध्वंध को गाड दे
कोयल को सुहानी आवाज दे
मृत्यु-राग को मृत्यु दे
धरती को निर्भय रखना

हेली मेरी !
जीवन है जग का आधार
मनुष्य को भूले नहीं बनेगा ।

अनुवाद : नीरज दइया