भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जीवन - 2 / संगीता गुप्ता

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


जहाँ
सब खत्म हो गया, अचानक
वहीं - उसी छोर पर
पल भर में
नयी दुनिया: एक नन्हीं - सी कोंपल
हिलाने लगी हाथ

उस कोंपल की हरियाली में
डूब जाती है

यह डूबना उसे भर देता है
उबरने के
एहसास से
आपाद
नमी से...