छोटे बल्बों की झालरें
बाउण्ड्री की तरह खींच दी गई हैं 
रोशनी से पाट दिए गए हैं गड्ढे 
औरतों के सुर का उतार-चढ़ाव 
बच्चों के उल्लास के साथ 
शुरू हुई ब्याह की रस्म 
अन्धेरी रात मौन साधे 
दूर से देखती रही सब
भूत के डर से अम्मा ने 
सबके हिस्से का कन्यादान किया 
चादर से ढककर भरी गई माँग
साथ फेरों से बाँध दिए गए
सात- सात जन्म
धीरे-धीरे यह रस्म पूरी हुई 
धीमीं पड़ गई मन्त्रोचार की ध्वनि 
औरते अपने घरों को वापस जा रही हैं 
बच्चे सो गए हैं इधर-उधर 
एक दूसरे पर हाथ-पाँव मारे 
राख और अधजली आहुतियाँ छोड़कर 
देवता गण भी चले गए 
अब कोहबर पहुँचकर वह 
ब्याह की थकान उतार देना चाहती है 
वह बाबा के कोहबर मे जीत लेती है
जुए की सातों पारियाँ 
एक और कोहबर जाना है उसे 
अभी बाकी हैं जुए की
कई -कई पारियाँ
रोशनी से पाटे गए गड्ढे 
सुबह दिखाई देने लगे हैं 
निर्वासित अन्धेरी रात 
सुबह में घुल गई है  
फेंकी गई पत्तलों पर
कुत्ते जूझ रहे हैं 
पंछियों का झुण्ड  
मण्डराने लगा है आकाश में
रात का गीत 
भोर की जीत 
सुबह धीरे-धीरे 
विलाप में बदल रही है।