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जुगल के चरन परम धन मेरे / स्वामी सनातनदेव
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राग प्रभात, तीन ताल 16.6.1974
जुगल के चरन परम धन मेरे।
चरन पाय अब चहों न मैं कछु, ते मेरे भव-निधि के बेरे॥
उनकी कृपा कहा दुरलभ जग, अग-जग चलहिं तिनहिं के प्रेरे।
जगनायक अज-भव-सुरवर हूँ कृपापात्र पायक जिन केरे॥1॥
जावकयुत अति अमल कमल सम वसहिं सदा मन-मानस मेरे।
तिन की छाया में विहरों हौं, ते मेरे नित अभय बसेरे॥2॥
तिनहिं पाय मैं भयो कृतारथ-परमारथ मेरे।
अलिवत् बँध्यौ रहों तिनमें नित, तकहुँ न कबहुँ अन्य कोउ घेरे॥3॥