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जुनूने-गिरिया का ऐसा असर भी, मुझ पे होता है / मनु 'बे-तख़ल्लुस'
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जुनूने-गिरिया का ऐसा असर भी, मुझ पे होता है
कि जब तकिया नहीं मिलता, तो दिल काग़ज़ पे रोता है
अबस आवारगी का लुत्फ़ भी, क्या ख़ूब है यारो!
मगर जो ढूँढते हैं , वो सुकूँ बस घर पे होता है
तू बुत है, या खुदा है, क्या बला है, कुछ इशारा दे,
हमेशा क्यूँ मेरा सिजदा, तेरी चौखट पे होता है
अजब अंदाज़ हैं कुदरत, तेरी नेमत-नवाजी के
कोई पानी में बह जाता, कोई बंजर पे रोता है
दखल इतना भी, तेरा न मेरा उसकी खुदाई में
कि दिल कुछ चाहता है, और कुछ इस दिल पे होता है |