भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जुर्म-ए-उल्फ़त पे हमें लोग सज़ा देते हैं / साहिर लुधियानवी
Kavita Kosh से
जुर्म-ए-उल्फ़त पे हमें लोग सज़ा देते हैं
कैसे नादान हैं, शोलों को हवा देते हैं
कैसे नादान हैं
हम से दीवाने कहीं तर्क-ए-वफ़ा करते हैं
जान जाए कि रहे, बात निभा देते हैं
जान जाए
आप दौलत के तराज़ू में दिलों को तोलें
हम मोहब्बत से मोहब्बत का सिला देते हैं
हम मोहब्बत से
तख़्त क्या चीज़ है और लाल-ओ-जवाहर क्या है
इश्क़ वाले तो ख़ुदाई भी लुटा देते हैं
इश्क़ वाले
हमने दिल दे भी दिया, एहद-ए-वफ़ा ले भी लिया
आप अब शौक़ से दे लें, जो सज़ा देते हैं
जुर्म-ए-उल्फ़त पे हमें लोग सज़ा देते हैं