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जुल्म के सामने चुप रहल / मनोज भावुक

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जुल्म के सामने चुप रहल
ई त जियते-जियत बा मरल

साँच के साथ देवे बदे
खुद से अक्सर लड़े के पड़ल

पाँव में हमरा काँटा चुभल
दर्द उनका हिया में उठल

हमरे रोपल रहल जंग ई
हमरे कीमत भरे के पड़ल

भीखमंगा सड़क पर सुतल
जइसे बालू प मछरी पड़ल

जेके पत्थर में खोजत रहीं
ऊ त धड़कन में हमरा मिलल

अब त 'भावुक' हो तहरा बिना
दू कदम भी बा मुश्किल चलल