भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जूंण / मीठेश निर्मोही
Kavita Kosh से
म्हारौ इण पकड़ लियौ है लारौ
जे म्हैं अंगेजलूं इण नै
करूं पाप
धाप।
अर वौ है
के
पल-पल, छिण-छिण
ताहीजै
तोळै सूं मासै-रत्ती में
छीजै
म्हारौ भख मांगै
निरभै व्हे
म्हारे सूं तप मांगै।
झूठ अर सांच रै
इण चितपुट
म्हारी मिनखा जूंण !!