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जूण रा आंटा / ओम पुरोहित कागद
Kavita Kosh से
सालां साल
काळ दर काळ
सूको समंदर थार
पण
खेजड़ी बधै
बिना छांट
बिना आंट।
खेजड़ी जाणै
जूण रा आंटा
सांभै
धोर्यां सारू हरियाळी
काळ सारू कांटा।