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जूते और आदमी / अंजू शर्मा
Kavita Kosh से
कहते हैं आदमी की पहचान
जूते से होती है
आवश्यकता से अधिक
घिसे जाने पर स्वाभाविक है
दोनों के ही मुंह का खुल जाना,
बेहद जरूरी है
आदमी का आदमी बने रहना,
जैसे जरूरी है जूतों का पांवों में बने रहना,
जूते और आदमी दोनों ही
एक खास मुकाम पर भूल जाते हैं याददाश्त
आगे के चरण में
आदमी बन जाता है मुन्तज़र अल जैदी,
जूते भूल जाते हैं पांव और हाथ का
बुनियादी फर्क