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जूते में / कुमार मुकुल
Kavita Kosh से
जूते में अपना पाँव डालते ही
लगता है
कि सिर डाल रहा होऊँ
फिर वही एक आवाज़ गूँजने लगती है
ठक-ठक
ठक-ठक से ऊँचा कोई भी स्वर
हो जाता है असह्य
जिसे उड़ा देना चाहता है जूता
अपनी ठोकरों में
और ऐसा करते
अक्सर वह
मेरे अपने ही सर से
ऊपर उठ जाता है।