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जूते सब समझते हैं / अंजू शर्मा
Kavita Kosh से
जूते
जिनके तल्ले साक्षी होते हैं
उस यात्रा के
जो तय करते हैं लोगों के पाँव,
वे स्कूल के मैदान,
बनिए की दुकान
और घर तक आती सड़क
या फिर दफ्तर का अंतर
बखूबी समझते हैं
क्योंकि वे वाकिफ हैं
उस रक्त के उस भिन्न दबाव से
जन्मता है
स्कूल, दुकान, घर या दफ्तर को देखकर...