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जूनी हेली / निशान्त
Kavita Kosh से
कित्ती बोदी
पड़गी आ
बंद पड़ी जूनी हेली
रंग हुयग्यो बदरंग
नींव खा’गी
सुरसरी
जे ईं नै
भार-झाड़’र कोई
रेवणो चावै
तो स्यात ई बींनै
ईं मांय
नींद आवै
हां, ईं रो
असल मालक
जे चावै
तो रैय सकै
कई दिन
पुरानी यादां सागै
जक्यां मांय है
गीत-राग
रमता टाबरिया
आंवता मिजमान
बणता पकवान ।