भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जूनून-ए-इश्क़ / शिव रावल
Kavita Kosh से
जूनून-ए-इश्क़ है, देखता है क्या.
अहद-ए-वफ़ा की तलाश में है, सोचता है क्या
वस्ल-ए-सुकूँ को तरसता है, तूं हँसता है क्या
फ़िक्र-ए-जुदाई से नावाकिफ़ है, तूं बनता है क्या
आलम-ए-तन्हाई के निशाने पर है, तूं तनता है क्या
बयान-ए-जुल्फ़-ए-यार है, दर्द-ए-दिल-ए-आशिक़ है,
तूं पढता है क्या
दरिया-ए-आग है, दरिया-ए-नूर नहीं, आगे बढ़ता है क्या
हौंसला-ए-शिकस्त है, हौंसला-ए-पा भी, पीछे हटता है क्या
तक़रीर-ए-बेवजह भी है, तक़रीर-ए-नायाब भी, समझता है क्या
मसला-ए-मोहब्बत है, दास्ताँ-ए-ज़ज़्बात है, 'शिव' तूं लिखता है क्या