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जून अबए भरि राति ट्रेन / यात्री
Kavita Kosh से
बइसल बइसल मेल ट्रेनक प्रतीक्षामेँ
बहार भए गेल आँखिक सूत
घंटा भरि लेट
आधा घंटा आओर लेट
पैतालीस मिनट आओर लेट...
आहि रे दैव, की भेलहु तोरा?
कइएक खेप फोड़ल आङुर
कइएक बेर भेल हाफी
चाटि गेल छी मुल्की मैगजीन
सुङुकि आएल छी सात कप चाह
सोँटि लेल अछि दू पाकिट सिगरेट
आहि रे दैव, आब की करू?
रङल-टीपल पेटारक भरेँ ओठङलि
दुरगमनिया कनिआ
सूतल अछि कि जागलि
वोधक अ’ ढ तर!
व’ र मुदा कटइ छइ फोँफ
करिआ कंबल पर ठामहि
सामान रखने अछि सँइति सिरमादिश
कए रहलइए अइहबक ओगरबाहि
सूति-पातिबाली अधबएसू लोकदिन
लालपाढ़िक पीअर साड़ी पहिरन...
माङुर सन एनमेन ओकरा देहक कांति
लगइए केहेन दिब
आब किए बहरैत आँखिक सूत
जूनि अबउ मेल ट्रेन भरि राति।