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जूही की कलियाँ बिखर गयी / राजकुमारी रश्मि
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वीणा की वाणी टूट गयी
वाणी का सयंम टूट गया.
हो गया सूर्य का अस्त आज
श्वासों का बन्धन छूट गया.
जूही की कलियाँ बिखर गयी
अनजाने ही निर्जन पथ पर.
उसके भी भीगे नील नयन
जो तोड़ रही पथ पर पत्थर.
था महाप्राण का वास जहां
वह सूना सूना द्वार हुआ.
कविता दुविधा में पड़ी हुई
ये कैसा उपसंहार हुआ ?
शत शत श्रद्धा के सुमन लिये
पीड़ा की लहरें उठती हैं.
संध्या की धूमिल बेला सी
भावों की विधियां लुटती हैं.
विश्वास नहीं होता मन को
तुम आज हमारे बीच नहीं
काया से यह जग छोड़ दिया,
पर जनमानस में रहे यहीं.
कुछ ऐसे चरण धरे तुमने
पद चिन्ह उभर आये पथ पर
संगीत सुरों से, रागों से.
गूजेंगे नभ में, शाश्वत स्वर.