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जेठ रे बैसाख के बिजुली चमके हे / अंगिका लोकगीत

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

दुलहे के सौंदर्य को देखकर उसकी सास मूर्च्छित हो जाती है। प्रकृतिस्थ होने पर वह दुलहे से पूछती है- ‘तुम्हारी माँ ने तुम्हें किसी साँचे में ढाला है, या किसी सोनार ने तुम्हें गढ़ा है?’ वह उत्तर देता है- ‘नहीं, ऐसी बात नहीं है, मेरा जन्म तो मेरी माँ की कोख से हुआ है।’ सास उस ओषधि का पता पूछती है, जिसके खाने से वैसा सुन्दर पुत्र उसे उत्पन्न हुआ। दुलहा उत्तर देता है- ‘वह औषधि मेरे पिताजी के पास है।’ सास दुलहे की इस उक्ति को अपने ऊपर दी गई गाली समझती है। वह अपने पति से दुलहे की शिकायत करती है, लेकिन उसका पति उसे समझाता है कि ऐसी बात नहीं है, दुलहे का कहना उचित है। वह पंडित और बुद्धिमान है।

जेठ रे बैसाख के बिजुली चमके हे।
ओइसन चमकै छथिन बरुआ के दँतिया<ref>दाँत</ref> हे॥1॥
जाबे हे कौने लाले बाबू, ससुरा गामे<ref>गाँव में</ref> पहुँचल।
सुरतिया देखि सासु, खसलै<ref>गिर गई</ref> मुरछाइ<ref>मूर्च्छित होकर</ref> हे।
सुरतिया देखि सासु, गिरलै मुरछाइ हे॥2॥
किए तोरा आहे बाबू, गढ़ले सोनार हे॥3॥
नाहिं मोरा आहे सासु, साँचले<ref>साँचे में</ref> सँचावल<ref>ढाला हुआ</ref>।
नाहिं मोरा आहे सासु, गढ़ले सोनार हे।
मैया कोखि आहे सासु, लेलिए<ref>लिया</ref> अवतार हे॥4॥
जेहो रे ओखद<ref>औषधि</ref> बाबू, मैया पिलैलकौं<ref>पिलाया</ref> हे।
सेहो रे औखद बाबू, हमरा के बतलाय देहो हे॥5॥
जेहो रे औखद सासु, मैया पिलैलकै हे।
सेहो रे औखद सासु, बाबूजी के पासे हे॥6॥
देखो रे आय माय, जमैया पढ़ै गारी हे।
एतना जे सुनिये हे सासु, बाबूजी के पासे हे॥7॥
हमरो जे जमैया हे धानि, पढ़लो पंडितबा हे।
बुधिया के छै, छोटबुधिया नहिं हे॥8॥

शब्दार्थ
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