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जेरऽ / कुंदन अमिताभ

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हम्में ओकरा सें भजैलियै जेरऽ
ओकरा सें नै
डग्घर पेॅ उड़ी रहलऽ
धूरा गरदा सें लेटैलऽ
नाक नेटा सें सनलऽ
नंगटे घूमी रहलऽ
हिन्नेॅ हुन्नेॅ
कड़कड़ुअ्आ रौदा में
बतरू सें
जेकरऽ बातऽ में मिठास छै
बड़ऽ-बड़ऽ आश छै
सपना केरऽ सतरंगऽ घोड़ा पर सवार
जेकरऽ चेहरा में सूरज केरऽ उजास छै।
हम्में ओकरा सें भजैंलियै जेरऽ
ओकरा सें नै
बैहारी में लागलऽ गहुमऽ के गाछ सें
जे पीरऽ-पीरऽ सरसों फूल साथें
झुमतें रहै छै हवा में
आरो भरतें रहै छै हृदय में
उनमुक्त आरो निश्चछल सरंग।
हम्में ओकरा सें भजैंलियै जेरऽ
ओकरा सें नै
माय केरऽ खिस्सा सें
जेकरा में रहै छै शीत बसंत के खिस्सा
जे ऐन्हऽ दै छै थपकी
ऐन्हऽ दै छै उमंग
आरो ऐन्हऽ जगाबै छै उत्सुकता
कि नींद में हेरैला के बादो
मऽन माय के गोदिहै
में जमलऽ रहै छै।