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जेहि बन सिंकियो ना डोलइ / मगही
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मगही लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
जेहि बन सिंकियो ना डोलइ, बाघ सिंह गरजइ हे।
तेहि बन चललन, कवन चच्चा, अँगुरी धरि कवन बरुआ हे॥1॥
पहिले जे कटबउ<ref>काटूँगा</ref> मूँजवा<ref>मूँज नामक घास</ref> मूँज के डोरी चाहिला हे।
तब कय कटबउ परसवा, परास डंडा चाहिला हे।
तब कय मारबउ मिरगवा, गिरिग छाल चाहिला हे॥2॥
जेहि बन सिंकियो न डोलइ, बाघ सिंह गरजइ हे।
तेहि बन चललन कवन भइया, अँगुरी धरि कवन बरुआ हे॥3॥
पहिले जे कटबउ मूँजवा, मूँज के डोरी चाहिला हे।
तब कय कटबउ परसवा, परास डंडा चाहिला हे।
तब कय मारबउ मिरिगवा, मिरिग छाल चाहिला हे॥4॥
शब्दार्थ
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