भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जे हेनोॅ होतियै / शिवनारायण / अमरेन्द्र

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हम्में जानै छियै
तोहें हमरे रास्ता के
एकरस अनुगामिनी छेकी
मतरकि एखनी तेॅ
हम्में आपनोॅ रास्ता पर असकल्लोॅ
थकलोॅ-हारलोॅ मुसाफिर छेकां
जे एकरस आपनोॅ रास्ता
बिला भाङटे रोॅ बढ़ैलेॅ जाय छै
मीत
बड्डी दूर छै मंजिल
मतर रास्ता के पूरे ज्ञान छै
उबड़-खाबड़ ई मुश्किल रास्ता केॅ
पार करै के सलीको मालूम छै
ऐतै जे भाङटोॅ
ओकरौ छेदे के
भीतरिया भेद सब मालूम छै
मजकि मीत
जों तोहें साथ अभिये होय जैतियौ
आपनोॅ दुख, हमरे साथें मिलाय लेतियौ
तेॅ यात्रा के थकान
हम्में साथ्हैं मिटाय लेतियै
जिनगी के समरयात्रा
आरो आसान होय जैतियै
रात में पहिलैं
आराम के बाती
हमरोॅ अन्तरधान केॅ
आलोकित करी जैतियै।