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जैसा भी था वैसा ही हूँ / शिवराम
Kavita Kosh से
पंख नहीं थे
फिर भी मैंने भरी उड़ानें
पैर नहीं थे
फिर भी मैंने दौड़ लगाई
हाथ नहीं थे
फिर भी मैंने पर्वत खिसकाए
आंख नहीं थी
फिर भी मैंने देखी जग की गहराई
नापी-जानी
सिखलाया मुझे तैरना
थपेड़ों दर थपेड़ों ने लहरों के
डूबा नहीं
तैर-तैर कर करी सफाई
कीचड़-काई
जलकुंभी
छाई वनस्पति भांति-भांति की
बिना जड़ों की
बिना अर्थ की
बोईं बेल सिंघाड़े की
ह्र्दय नहीं था
फिर भी मैंने प्यार किया सृष्टि से
वक़्त नहीं था
फिर भी मैंने हर दायित्व निभाया
जितना खोया उतना पाया
जैसा भी था वैसा ही हूँ
निकट भविष्य आसन्न युद्ध हित
अस्त्र चलाना-शस्त्र चलाना
सीख रहा हूँ