भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जैसे-जैसे बच्चे पढ़ना सीख रहे हैं / राकेश जोशी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जैसे-जैसे बच्चे पढ़ना सीख रहे हैं
हम सब मिलकर आगे बढ़ना सीख रहे हैं

पेड़ों पर चढ़ना तो पहले सीख लिया था
आज हिमालय पर वो चढ़ना सीख रहे हैं

भूख मिटाने को खेतों में जो उगते थे
गोदामों में जाकर सड़ना सीख रहे हैं

कहाँ मुहब्बत में मिलना मुमकिन होता है
इसीलिए हम रोज़ बिछड़ना सीख रहे हैं

नदी किनारे बसना सदियों तक सीखा था
गाँवों में अब लोग उजड़ना सीख रहे हैं

धूप निकल कर फिर आएगी इस धरती पर
दुनिया को हम लोग बदलना सीख रहे हैं