जैसे फूलकुमारी हंसती थी / मिथिलेश कुमार राय
मैं यह नहीं कहूंगा साहब
कि मैं एक गरीब आदमी हूं इसलिये
वो-वो नहीं कर पाता जो-जो
करने की मेरी इच्छा होती है
यह सच है साहब कि मैं एक फैक्ट्री में
सत्ताइस सौ रुपये माहवारी पर काम करता हूं
और सवेरे आठ बजे का कमरे से निकला
रात के आठ बजे कमरे पर लौटता हूं
पर इससे क्या
मैं शायद अकर्मण्य आदमी हूं साहब
अब कल ही की बात को लीजिये
रात में कमरे पर लौटा तो
बिजली थी
दिन में बारिश हुई थी इसलिये
हवा नहीं भी आ रही थी कमरे में तो नमी थी
खाट पर लेटा तो हाथ में
अखबार का एक टुकडा आ गया
लालपुर में पांचवी तक की पढाई कर चुका हूं साहब
अखबार के टुकडे में एक अच्छी सी कहानी थी
पढने लगा तो बचपन में पढे
फूलकुमारी के किस्से याद आ गये
कि जब वह खुश होती थी तो
जोर-जोर से हंसने लगती थी
कहानी पढने लगा
पढकर खुश होने लगा साहब
लेकिन तभी बिजली चली गयी
देह ने साथ नहीं दिया साहब
कि उठकर ढिबरी जलाता और
इस तरह खुशी को जाने से रोक लेता
और हंसता जोर-जोर से
जैसे फूलकुमारी हंसती थी