भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जैसे बना मैं वैसे रहा, ज़िंदगी के पास / रामस्वरूप 'सिन्दूर'
Kavita Kosh से
जैसे बना मैं वैसे रहा, ज़िंदगी के पास!
अँधियारा छोड़ जाता रहा, रौशनी के पास!!
वो झील में, घाटी में, समन्दर में क्या मिले,
ज़िद करके मेरी प्यास रुकी है नदी के पास!
मैं दोस्ती के हाथ मात खाता रहा हूँ,
लड़ने का और ढंग, मेरी दुश्मनी के पास!
वो शख्स मेरा यार-व्यार कुछ भी नहीं है,
दिल छोड़ के सब-कुछ है उस आदमी के पास!
सब कुछ है मुझ में, दुश्मनी, जज़्बा नहीं है,
जो चाहे चला आये मेरी, मेरी दोस्ती के पास!
‘सिन्दूर’ के अन्दाज़ से मत खुद को देखिये,
कुछ ख़ास चीज होती है हर आदमी के पास!