जोआओ की कविता / नोयेमिआ डे सौसा / राजेश चन्द्र
जोआओ हमारी तरह युवा था
जोआओ के पास जाग्रत आँखें थीं पैनी
और सतर्क कान
हाथ सदा आगे बढ़ने को आतुर
एक मन जिसमें कल के लिए चिन्ता थी
एक ज़बान जो अनन्त काल तक
'नहीं' का उदघोष करती रह सकती थी
जोआओ हमारी तरह का युवा था।
जोआओ पिता था, माता था,
भाई था बहुतों का
जोआओ बहुतों के लिए लहू था,
बहुतों का पसीना था वह
वह मुस्कुराता ऐसे
जैसे काम से लौटते वक़्त मुस्कुराती हैं निढाल विक्रेता लड़कियाँ
उसी तरह सहता
जैसे सहती रहती हैं कृषक औरतें
वह महसूस करता
कि सूरज कितना बेधक होता है शूल जैसा
अरब के मध्यान्ह में
बाज़ार की चट्टी पर चीनियों के साथ उसने मोल-भाव किया
एशिया के आढ़तियों को उसने बासी हरी सब्ज़ियाँ बेचीं
विद्रोहियों के साथ वैसे ही रोया
जैसे वे रोते हैं ख़ून के आँसू
झक-सफ़ेद चाँद के लाड़ में वह मगन रहता
शिलाबोस के साथ वह गाता रहता
घर के लिए उत्कण्ठा से भरे उनके गीत
वह उतना ही आशावान रहता आया
जितने सब थे
रोशन सवेरे के लिए,
मुक्तकण्ठ से गाते हुए
जोआओ बहुतों के लिए लहू था,
बहुतों का पसीना था वह
जोआओ हमारी तरह का युवा था।
जोआओ और मोज़ाम्बिक अविच्छिन्न थे
जोआओ मोज़ाम्बिक के बग़ैर नहीं हो सकता था
जोआओ एक ताड़ के, नारियल के वृक्ष जैसा था
चट्टान का एक टुकड़ा, झील जैसे नियासा, एक पहाड़
एक इनकम्माती, एक जंगल,
मकाला का एक वृक्ष
एक समुद्र तट, मापुतू, एक हिन्द महासागर
जोआओ मोज़ाम्बिक का
एक अभिन्न अंग था
जिसकी जड़ें बहुत गहरी थीं
जोआओ हमारी तरह का युवा था।
जोआओ में जीवन की उत्कंठा थी
और उसे जीत लेने की ललक भी
और इसीलिए उसे जेलों, पिंजरों और सलाख़ों से घृणा थी
उसे उन लोगों से घृणा थी, जो इन्हें बनाते हैं
जोआओ विमुक्त था
जोआओ परवाज़ के लिए पैदा हुआ एक बाज़ था
जोआओ को जेलों से घृणा थी और उनसे भी
जो उन्हें बनाते हैं
जोआओ हमारी तरह का युवा था।
चूँकि जोआओ हमारी तरह का युवा था
और उसकी जाग्रत आँखें थीं पैनी
और वह कला, कविता और जॉर्ज एमाडो में डूबा रहता था
और बहुतों के लिए लहू, बहुतों का पसीना था वह
और वह मोज़ैम्बिक में घुल-मिल गया था
और वह एक बाज़ था जो परवाज़ के लिए पैदा हुआ था
और जेलों और उनको बनाने वालों से घृणा करता था
आह, इन्हीं तमाम वजहों से हमने जोआओ को खो दिया है
हमने खो दिया है जोआओ को।
आह, इसीलिए तो हमने खो दिया है जोआओ को
इसीलिए तो हम रात और दिन
विलाप करते हैं जोआओ के लिए
उस जोआओ के लिए,
जिसे चुरा ले गए हैं वे हमसे।
और हम पूछते हैं
कि क्यों आख़िर वे ले गये जोआओ को?
जोआओ जो युवा और उत्साही था हमारी तरह
जोआओ जो जीवन के लिए लालायित था
जोआओ जो हम सबका भाई था
क्यों आख़िर वे चुरा ले गए हमसे जोआओ को
जो बोलता ही रहता था
आशा और चमकीले दिनों के बारे में
जोआओ जिसकी झलक भाई के आलिंगन-सी थी
जोआओ जो हर वक़्त हममें से
किसी के लिए खड़ा रहता था
जोआओ जो हमारी माँ और हमारा पिता था
जोआओ जिसे हमारा रक्षक होना था
जोआओ जिसे हम प्यार करते थे और करते हैं
जोआओ जो हर हाल में हमारा था
ओह, क्यों आख़िर वे चुरा ले गए हमसे जोआओ को?
कहीं कोई जवाब ही नहीं देता
सब उदासीन, कोई भी जवाब नहीं देता।
पर हमें मालूम है
वे क्यों हमसे जोआओ को ले गए
जोआओ, हमारा सच्चा भाई।
पर क्या इससे फ़र्क पड़ता है?
वे सोचते हैं कि उन्होंने चुरा लिया है, पर जोआओ यहीं है हमारे साथ
वह यही है और आने वाले तमाम दूसरे लोगों में होगा
उन सबमें जिन्हें अभी आना है।
जोआओ अकेला नहीं है
जोआओ एक जनसमूह है
जोआओ बहुतों के लिए लहू है, पसीना है
और जोआओ, जोआओ बन रहे जोआक़िम, जोस
अब्दुल्ला, फ़ैंग, मुसुम्बुलुको, मस्कारेन्हास
उमर, युतांग, फ़ैबियाओ में भी है
जोआओ एक जनसमूह है,
बहुतों का लहू है, पसीना है बहुतों का
और कौन है जो ले जाएगा जोस, जोआक़िम, अब्दुल्ला
फ़ैंग, मुसुम्बुलुको, मस्कारेन्हास, उमर, युतांग और फ़ैबियो को?
कौन?
कौन है जो ले जाएगा
हममें से हर एक को
और बन्द कर सकेगा किसी पिंजरे में?