भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जोकर / प्रकाश मनु
Kavita Kosh से
सबका मन बहलाता जोकर,
हँसता और हँसाता जोकर।
झूम-झामकर यह आता है,
नए करिश्मे दिखलाता है।
उछल बाँस पर चढ़ जाता है,
हाथ छोड़कर लहराता है।
सिर के बल यह चल सकता है,
आग हाथ पर मल सकता है।
जलती हुई आग की लपटें,
उछल, पार करता यह झट से।
अगले पल फिर हल्ला-गुल्ला,
गाल फुलाता ज्यों रसगुल्ला।
ढीला-ढाला खूब पजामा,
लगता है यह सचमुच गामा।
फुलझड़ियों-सी हैं मुसकानें,
फूलों-जैसे इसके गाने।
हरदम हँसता यह मस्ताना,
खुशियों का है भरा खजाना!