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जो आँख ने देखा उसे मंज़र लिक्खूं / रमेश तन्हा
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जो आँख ने देखा उसे मंज़र लिक्खूं
आईने में उतरा है तो पैकर लिक्खूं
इंसान का दिल आँख भी है, आईना भी
तो क्यों न इसे शौक़ का मज़हर लिक्खूं।