जो आँख ने देखा उसे मंज़र लिक्खूं
आईने में उतरा है तो पैकर लिक्खूं
इंसान का दिल आँख भी है, आईना भी
तो क्यों न इसे शौक़ का मज़हर लिक्खूं।
जो आँख ने देखा उसे मंज़र लिक्खूं
आईने में उतरा है तो पैकर लिक्खूं
इंसान का दिल आँख भी है, आईना भी
तो क्यों न इसे शौक़ का मज़हर लिक्खूं।